मुझे विश्वास हैं तुम पर
मुझे विश्वास हैं तुम पर
_____________
सुनो!,
मुझे विश्वास हैं तुम पर,
मुझे नहीं छोड़ोगे,
मेरी बात मानोगे,
मेरी हर गलती को तुम ही सुधारोंगे,
क्यों की.......
मुझे विश्वास हैं तुम पर,
बचपन से आज तक तेरी ही प्रतीक्षा की है हमने,
मेरी रग -रग में तेरी ही खुशबू बसाई है हमने,
दिल के हर धड़कन में तेरा नाम बसाया हैं हमने,
मेरा हर कदम पर तुम दोगे साथ,
क्यों की......
मुझे विश्वास हैं तुम पर
तुम हमेशा मेरे लिए रहोगे पहले,
चाहें कोई कुछ भी मुझे कहले,
ताउम्र सांस चलने तक,
तुम मेरे ख्याल रखोगे,
क्यों की......
मुझे विश्वास हैं तुम पर
लेकिन हर मुमकिन कोशिश करूँगी
तुम्हारे आंसुओं को
मुस्कान में बदलने के लिए
जिंदगी की सफ़र में जहाँ कहीं होगी
तुम्हें थकान महसूस
मेरे कंधे होंगे तुम्हें भारहीन करने के लिए
मुझे पता हैं तुम भी दोगे मेरा साथ,
क्यों की ........
मुझे हैं तुम पर विश्वास
मैं नहीं जानती कभी अपने
भीतर के दम घुटते डरावने एकांत में
तुम्हारी उपस्थिति महसूस
करूँगी या नहीं...?
लेकिन तेरा स्नेह
मेरी जिंदगी के हर पन्नें पर
दर्ज़ होगी...
कभी लड़खड़ाएंगे जब मेरे कदम
तुम मुझे बाजूओं का सहारा दोगे
मेरे हौसले को
पुनः बुलंद करोगे,
क्यों की.....
मुझे विश्वास हैं तुम पर
हर वक़्त खड़े रहोगे तुम मेरे साथ
वहसी नज़रों से जब मुझे कोई देखेगा
उठेंगे हाथ मेरे
प्रार्थनाओं में जब भी
सिर्फ़ दुआएँ होगी तुम्हारी ख़ुशी के लिए
हर वक्त जो रहोगे तुम मेरे साथ,
क्यों की.....
मुझे विश्वास हैं तुम पर
मैं नहीं जानती
जिस रिश्ते के डोर से
आज बंधे है दोनों
कभी उस रिश्ते का आधा हिस्सा
बन पाऊँगी या नहीं..?
लेकिन मुँह न कभी तुमसे
कभी किसी रस्मों रिवाज़ से
प्रीत के रंग न चढ़े मन पर
मगर मेरी मांग में एक चुटकी होगा सिंदूर का
जो तेरी उम्र को और लंबी करेगा
मैं नहीं जानती
क्यूँ विधाता ने ये खेल रचा है..?
क्यूँ बिना प्रेम इस बन्धन में
हम दोनों को बांधा है
बेशक़ तुम्हारे हृदय के पट
मेरे लिए बंद रहेंगे
न लिखोगे तुम
कभी कोई प्रेम गीत मेरे नाम
न लाओ कोई तोहफ़ा
कभी मेरे लिए अपनी पसंद का
लेकिन मेरे आराध्य
ये मांग में भरी हुई
एक चुटकी सिंदूर की लाज़
अब उम्र भर रखनी है
तुम्हारे नाम से शुरू
ये जिंदगी जीनी है मुझे बस तेरे संग
तुम्हारे साथ लिए
ये प्रणय परिक्रमा
जिसकी गवाह बने ये धरती -आकाश ये सूर्य ये चंद्र
मुझको रखेगें आनन्दित हर दुखों से
उजाले होंगे मेरे जीवन के घने अँधकार में
चमकते हुए तुम्हारे प्रकाश पुंज से
मेरी आती जाती साँसों में
तुम्हारी उपस्थिति
जैसे आसमाँ में चमकता हुआ चाँद
जैसे आत्मा और प्राण
तुमसे होगी मेरी हर सुबह हर शाम
तुम्हें समर्पित होगी मेरी तपस्या,
मेरी सम्वेदनाओं के बेलपत्र
होंगे तुम्हें अर्पण
मुझे बस तेरा होना,
मुझे राधा कृष्ण बन जाना,
Mujh
......................
मैं नहीं जानती कभी होगा हमारा मिलन लेकिन प्रीत की ये डोर अब तुम संग बंधी रहेगी सातों जनम... जनम जनम। क्यों की मुझे विश्वास हैं तुम पर
----------------
प्रिया पाण्डेय रोशनी
Zakirhusain Abbas Chougule
07-Oct-2021 10:51 PM
बहुत ही सुन्दर
Reply
Gunjan Kamal
06-Oct-2021 12:10 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
Reply
Raushan
05-Oct-2021 08:08 PM
Zabardast 👌 padhte Gaye aur jigyasa badti gayi....
Reply